सर्वांगीण विकास के प्रयास

श्री सुखाड़िया स्वयं विद्युत अभियांत्रिकी में डिप्लोमाधारी होने के कारण विकास में विद्युत आपूर्ति के महत्व से भली-भांति परिचित थे। उनकी दृढ़ मान्यता थी कि जब तक राजस्थान में स्वयं का विद्युत उत्पादन होकर मांग के अनुसार उसकी पर्याप्त आपूर्ति नहीं होगी तब तक राज्य का औद्योगिक विकास नहीं हो सकेगा। उन्होंने इस दिशा में मुख्यमंत्री बनते ही प्रयास करने प्रारम्भ कर दिये थे। उन्होंने भाखरा नांगल आदि राज्य के बाहरी स्रोतों से राज्य के लिये विद्युत आपूर्ति प्राप्त करना सुनिश्चित कराया। सौभाग्य से उनके सघन प्रयासों से उनके शासन काल में ही राणा प्रताप सागर बांध और जवाहर सागर बांध पर निर्मित विद्युत संयत्रों के कारण राजस्थान का अपना विद्युत उत्पादन वर्ष 1954 में लगभग 13 मेगावाट से बढ़ कर 200 मेगावाट हो गया।

मोहनलाल सुखाड़िया

विद्यत आपूर्ति में वृद्धि के कारण राज्य का द्रुतगति से औद्योगिक विकास होने लगा। श्री सुखाड़िया राज्य की खुशहाली के लिए कृषि के साथ-साथ उद्योगों को प्रमुख आधार मानते थे। औद्योगिकरण के लिये उन्होंने उदार नीति अपनाई जिसके फलस्वरूप कोटा का राजस्थान के कानपुर के रूप में द्रुतगति से विकास हुआ। उस समय अकेले कोटा में श्रीराम समूह, जे.के. समूह और केन्द्रीय सरकार द्वारा जितने बड़े-बड़े उद्योग स्थापित किये गये, उतने संभवतया फिर कभी राजस्थान में कही नही लगाये गये। उदयपुर का कोई भू-भाग ऐसा शेष नहीं रहा जहां बड़े अथवा मध्यम श्रेणी के उद्योग स्थापित नहीं किये गये हो। सभी जिलों में औद्योगिक क्षेत्रों का विकास कर उद्यमियों को आधारभूत सुविधायें उपलब्ध कराई गई। राज्य की राजधानी जयपुर में सभी सुविधाओं से युक्त विश्वकर्मा औद्योगिक क्षेत्र की स्थापना की गई जो उस समय समूचे एशिया का लघु उद्योगों का सबसे बड़ा क्षेत्र माना जाता था।

निजी क्षेत्र में औद्योगिकरण के साथ-साथ सार्वजनिक क्षेत्र पर भी विशेष ध्यान दिया गया। यह श्री सुखाड़िया और उनकी पार्टी की समाजवादी विचारधारा के अनुकूल ही था। डीडवाना में सोडियम सल्फेट संयत्र, बीकानेर और लाडनूं में ऊनी मिलें, धौलपुर का हाई-टेक ग्लास संयत्र श्री गंगासागर की शूगर मिल और टोंक में चमड़ा फैक्ट्री आदि की स्थापना और सुदृढ़ीकरण आदि इसके उदाहरण है। राज्य में पहली बार सहकारी क्षेत्र में गुलाबपुरा में एक कपड़ा मिल और केशोरायपाटन में एक शूगर मिल स्थापित की गई। सड़क परिवहन को राजकीय क्षेत्र में लेकर राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम की स्थापना की गई। इसी प्रकार राजस्थान राज्य विद्युत मंडल बनाया गया।

श्री सुखाड़िया ने आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने के उद्धेश्य से अभिनव प्रयोग कर अनेक निगमों की स्थापना की जिनमें राजस्थान वित निगम, राजस्थान औद्योगिक विकास एवं विनियोजन निगम, राजस्थान लघु उद्योग निगम, राजस्थान आवासन मंडल तथा राजस्थान भूमि-विकास निगम आदि और सहकारी क्षेत्र में राजस्थान सहकारी क्रय-विक्रय संघ (राज्य स्तरीय) और जिला स्तरीय सहकारी बैंक तथा कृषकों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने के लिए राजस्थान कृषि-उपज विपणन अधिनियम बनाकर कृषि उपज मंडी समितियों की स्थापना की।

श्री सुखाड़िया राज्य में कला, संस्कृति, खेलकूद, साहित्य आदि के उन्नयन को राज्य के सर्वांगीण विकास के लिये अपरिहार्य मानते थे। इसके लिये राजस्थान साहित्य अकादमी, राजस्थान ललित कला अकादमी, राजस्थान संगीत-नाटक अकादमी, राजस्थान राज्य खेलकूद परिषद्, प्राच्य शोध प्रतिष्ठान आदि अनेक संस्थाओं का गठन किया गया और उन्हें अपने-अपने क्षेत्र में प्रभावी ढंग से कार्य करने के लिये आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराये गये।

उन्होंने न केवल संस्थाओं का निर्माण और विकास किया बल्कि संस्थाओं को पूरा सम्मान भी दिया। राजस्थान विश्वविद्यालय के भवन के विस्तार के लिए आपने पर्याप्त मात्रा में भूमि के साथ संसाधन उपलब्ध कराये। राजस्थान की वास्तुकला के अनुरूप इतना विशाल और सुंदर भवन अन्यत्र मिलना कठिन है। डा. मोहनसिंह मेहता इस विश्वविद्यालय के सही अर्थ में संस्थापक उप कुलपति थे। कई अवसर ऐसे आये जब डाॅ. मेहता ने मुख्यमंत्री से मिलने के लिये समय मांगा। इसके प्रत्युत्तर में श्री सुखाड़िया स्वयं उनके निवास स्थान पर उनसे मिलने गये। वे एक विश्वविद्यालय और उसके उप कुलपति की गरिमा और प्रतिष्ठा के अनुरूप उन्हें सम्मान प्रदर्शित करना जानते थे। इसी प्रकार राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के साथ उन्हें कोई औपचारिक विचार-विमर्श करना होता था तो वे स्वयं उनसे मिलने जाते थे।

श्री सुखाड़िया अपनी मोहक मुस्कान के लिये विख्यात थे। उनके सम्पर्क में आने वाला हर छोटा-बड़ा व्यक्ति उनकी मुस्कान के प्रसाद से उपकृत होता था। विभिन्न राजनीतिक और प्रशासनिक समस्याओं का सामना करते हुए भी वे कभी तनावग्रस्थ नहीं रहते थे। ‘‘भूल जाओ और क्षमा करो।’’ उनके जीवन का सिद्धान्त था। किसी से गलती की कीमत की अपेक्षा करने के स्थान पर वे उसे क्षमादान देते थे। अपनी मुस्कान और उदार क्षमाभाव से उन्होनं सभी राज्यकर्मियों और राजनीतिक कार्यकर्ताओं पर एक प्रकार से वशीकरण कर रखा था। इससे अनुशासन और कर्तव्य निष्ठा की एक अपूर्व भावना का संचार हुआ और सभी नए राजस्थान के निर्माण के उनके सपने को साकार रूप देने के महा अनुष्ठाम में जी-जान से काम करते थे। प्रशासनिक अधिकारियों को समय-समय पर उचित प्रशिक्षण के महत्व को समझाते हुए आपने अधिकारी प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना की जो आज समूचे देश-विदेश के प्रशिक्षण संस्थानों में अपना विशिष्ट स्थान रखता है।

प्रशासनिक संस्कृति

मोहनलाल सुखाड़िया

श्री सुखाड़िया ने लोक-प्रशासन के उच्चतम आदर्शो का अनुसरण करते हुए राज्य में एक ऐसी प्रशासनिक संस्कृति विकसित की जिसके कारण एक ओर मंत्रियों सहित राजनेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों में आपसी विश्वास और सौहार्द्रपूर्ण वातावरण रहा वहीं दूसरी ओर राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त रह कर प्रशासनिक अधिकारी निष्पक्ष होकर अपनी राय प्रकट करने के लिये न केवल स्वतंत्र थे, बल्कि उनकी निष्पक्ष राय का सम्मान भी किया जाता था। उन्होंने सदैव प्रशासन के क्षेत्र में नवाचार और अभिनव प्रयोगों को प्रोत्साहन दिया। लोक-प्रशासन और पंचायती राज व्यवस्था में सुधार के लिये वे निरन्तर प्रयत्नशील रहे। थोड़े-थोड़े अंतराल के पश्चात् वे विशेषज्ञों की समितियों द्वारा प्रशासनिक सुधारों और पंचायती राज व्यवस्था में सुधार के लिये सुझाव आमंत्रित करते और उन सुझावों पर अमल भी करते। उन्होंने पंचायती राज व्यवस्था के क्रियान्वयन को निरन्तर प्रभावी बनाये रखने के लिए ‘‘मूल्यांकन संगठन’’ के नाम से एक अलग विभाग की स्थापना की। गत कुछ वर्षो से लोकपाल और लोक आयुक्त को लेकर जोर-शोर से चर्चाएं हो रही है। लेकिन श्री सुखाड़िया ने अपने बुद्धि विवके से एक प्रभावी और व्यावहारिक प्रशासनिक नवाचार के रूप में भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए सतर्कता आयुक्त के पद का सृजन कर उसे एक अधिकार सम्पन्न स्वरूप प्रदान किया।

कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा, पेयजल , सड़क, रोजगार, आवास, समाज-कल्याण, पर्यटन, सहकारिता, पशुपालन आदि विकास से सम्बन्धित कोई ऐसा बिन्दु नहीं था जिस पर उन्होंने गहन चिन्तन कर व्यावहारिक योजनाएँ क्रियान्वित नहीं की हो। वे प्रातः पांच बजे से लेकर देर रात्रि तक अपने सपनों के राजस्थान का निर्माण करने में ही व्यस्त रहते। राजस्थान का कोई गांव ऐसा नहीं था जहां जाकर उन्होंने उसकी समस्याओं से साक्षात्कार और उसका निराकरण करने का सार्थक प्रयास नहीं किया हो। राजस्थान उनके रोम-रोम में बसा था और वे राजस्थान के जन-जन के मन में बसे थे।